Description
एक मौसम आया कहने को – एक काव्य श्रखँला नहीं है परन्तु एक महाकाव्य है मेरे उस चेतन मन को अंदोरने का जो बारंबार बिछड़े हुए रिश्तों के यादों को समेटने का निरर्थक प्रयास करता है । एक झंझा वात सा उठता है जैसे ही मौसम लौट कर आता है। ऐसा लगता है कि जो पिछले मौसम के साथ चला गया , हमारी उम्र, हमारे संगी साथी, हमारे रिश्ते नाते, हमारे पथ-पर्दशक, हमारे शिक्षक, कोई भी तो लोट कर नहीं आने वाला है । पर जब सब कुछ छूट रहा था तब अहसास कहां था छूटने का, तब तो आगे बढने का हौसला था ,और एक दिन बैठ कर बीते हुए दिनों पर पश्चाताप करना ही था