हम सब सोचते रहते हैं – कि वक्त आयगा तो अमुक काम कर लेगें। पर वक्त बहुत तेजी से हाथों से फिसलता रहता है और एक दिन धीरे धीरे सब कुछ बिछङ जाता है क्योकि विच्छेद,अलगाव और मृत्यु शाश्वत है। जीवन के अतिंम पलों मे सोचते ही रह जाते है कि – अरे ये क्या हुआ , जीवन कितना जल्दी गुजर गया, इस जीवन में तो हम कुछ कर ही नही पाये , यहां तक की मन भर कर जीवन को जी तक भी नही पाये । जिसने जीवन को भरपूर जिया उसको भी एक ग्लानि रह ही जाती है – अंत आ गया मैं तो कुछ कर ही नही सका, जिसने बहुत कुछ किया उसको अफसोस रह गया – आह किया तो सब कुछ, पाया तो सब कुछ पर ये क्या मुझे तो इसका परिश्रय ही नही मिला, मन इतना अशांत क्यों है, दुखी क्यो हैं , क्यो इस मुर्मषाअवस्था मे आंखो मे पश्चाताप के आँसूं है , क्यों हैं ये आँसूं?
क्योकि इन आसूंओ के जिम्मेदार हम ही है। हमने पाने खोने की बस क्रिया पर ध्यान दिया। लेकिन जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है इस पर कभी ध्यान ही नही दिया । ईश्वर ने क्यो भेजा हे धरती पर जन्म लेकर इसको कभी आध्यात्मिक विवेचना की दृष्टि से समझने की कोशिश ही नही की। क्योकि सारी जिन्दगी डरते रहे अपने सृजित अस्तित्व को बचाने को कोशिश में। ज्योतिष शास्त्र बहुत गहराई में जाकर मूल्यांकन करता है और आपको रास्ता दिखाता है इसी अँतिम पश्चाताप से बचने के लिए
