मेरे प्यारे दोस्तो
ये शिव के प्रति मेरा समर्पित काव्य ग्रंथ जो शुरू होता है एक अहसास से कि इसमे तो कुछ भी ठीक नहीं – ना सुर, ना सगींत, ना ही धुन और इसी अपरिपक्वक्ता के साथ अंत हो जाता है – उसी सुर , लय, धुन व संगीत की तलाश में। इसमे आपका आन्नंद नहीं है , इसमे मन व ह्दय को आन्नद विभोर करने की शक्ति नहीं है मगर ये आपकी आत्मा से टकराकर आपके अहम को चूर चूर कर देने की शक्ति रखता है जिससे आपको आपके अपने होने के अस्तित्व का ज्ञान हो। ये मार्ग है आकार से निराकार का। ये मार्ग हे अपूर्ण से पूर्णता का, ये मार्ग है अबोध से बोध का, ये मार्ग है अपरिपक्वक्ता से परिपक्वता का। पूरी तन्मयता से आत्मा पर कष्ट उठा कर सुने – इसके तत्व ज्ञान को समझे – इसमे प्रतिकूल सुर, लय, धुन व सगींत पर ध्यान न देकर इसके मर्म, व अंर्तनिहित तत्व को आत्मसात करे। सावन के इस महीने शुक्ल पक्ष की द्वितीया को आप लोगो को शिव की ये यात्रा समर्पित है।
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